अनंत तिर्थाचे माहेर | अनंत रुपांचे हे सार
अनंती अनंत अपार | तो हा कटी कर ठेवुनि उभा||1||
धन्य धन्य पांडुरंग | सकळ दोषा होय भंग |
पूर्वज उद्धरती सांग | पंढरपूर देखलिया||धृ||
निरा भींवरा पडता दुष्टी | स्नान करितां शुद्ध सुष्टी |
अंती तो वैकुंठप्राप्ती | ऐसे परमेष्ठी बोलिला||2||
तेथे एक शीत दिधल्या अन्र | कोटी कुळांचे होय उद्धरण | कोटी याग केले पूर्ण | ऐसे महिमान ये तिर्थाचे||3||
नामा म्हणे धन्य जन्म | ज्यासी पंढरीचा नेम |
तया अंती पुरंषोत्तम | जीवे भावे न विसंबे||4||
अनंती अनंत अपार | तो हा कटी कर ठेवुनि उभा||1||
धन्य धन्य पांडुरंग | सकळ दोषा होय भंग |
पूर्वज उद्धरती सांग | पंढरपूर देखलिया||धृ||
निरा भींवरा पडता दुष्टी | स्नान करितां शुद्ध सुष्टी |
अंती तो वैकुंठप्राप्ती | ऐसे परमेष्ठी बोलिला||2||
तेथे एक शीत दिधल्या अन्र | कोटी कुळांचे होय उद्धरण | कोटी याग केले पूर्ण | ऐसे महिमान ये तिर्थाचे||3||
नामा म्हणे धन्य जन्म | ज्यासी पंढरीचा नेम |
तया अंती पुरंषोत्तम | जीवे भावे न विसंबे||4||