राजा राम: मर्यादा पुरुषोत्तम की अमर गाथा
अयोध्या के सम्राट दशरथ के महल में एक ऐसे पुत्र का जन्म हुआ, जो केवल एक राजकुमार नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और आदर्श का प्रतीक बनने वाला था। माता कौशल्या की गोद में जब यह दिव्य शिशु आया, तो समस्त अयोध्या आनंदित हो उठी। इस बालक का नाम रखा गया राम, जो आगे चलकर सम्पूर्ण मानवता के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने।
शिक्षा और शौर्य की शुरुआत
राम का बचपन शील, ज्ञान और वीरता से भरा रहा। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में उन्होंने वेद, शस्त्र और नीति का गहन अध्ययन किया। जब महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आए और राजा दशरथ से राम को अपने साथ राक्षसों के संहार के लिए भेजने का आग्रह किया, तो राम ने सहर्ष इस चुनौती को स्वीकार किया। वन में उन्होंने ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे दानवों का वध कर ऋषियों को उनके अत्याचार से मुक्त कराया।
स्वयंवर में विजय और विवाह
मिथिला के राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक अनोखी परीक्षा रखी—शिवजी के भारी धनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ानी थी। अनेक राजाओं के असफल रहने के बाद राम ने सहजता से धनुष उठाया और जैसे ही उन्होंने प्रत्यंचा चढ़ाई, वह दो टुकड़ों में टूट गया। इस अद्वितीय पराक्रम के कारण राम और सीता का विवाह संपन्न हुआ।
वनवास: धर्म की परीक्षा
राजगद्दी मिलने से पहले ही राम को एक कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ा। उनकी सौतेली माता कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने वरदान स्वरूप राम को चौदह वर्षों का वनवास देने का आग्रह किया। पिता की आज्ञा का सम्मान करते हुए राम बिना किसी द्वेष या विरोध के वन को प्रस्थान कर गए। उनके साथ धर्मपरायण भाई लक्ष्मण और समर्पित पत्नी सीता भी चल पड़ीं।
वन में रहते हुए उन्होंने अनेकों ऋषियों की रक्षा की, दुष्ट राक्षसों का अंत किया और धर्म का प्रचार किया। लेकिन उनके जीवन में सबसे बड़ा संकट तब आया जब लंका के राजा रावण ने छलपूर्वक सीता का हरण कर लिया।
लंका युद्ध और रावण वध
अपनी पत्नी को मुक्त कराने के लिए राम ने वानरराज सुग्रीव और हनुमान को मित्र बनाया। उनकी सहायता से उन्होंने समुद्र पर सेतु बनाया और विशाल सेना के साथ लंका पर चढ़ाई कर दी। रावण और राम के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें अंततः राम ने अधर्म के प्रतीक रावण का वध कर विजय प्राप्त की और सीता को पुनः सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।
अयोध्या वापसी और रामराज्य की स्थापना
लंका विजय के पश्चात राम, सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे। पूरे नगर में दीप जलाए गए और आनंद उत्सव मनाया गया। इस दिन को आज भी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। राम का राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने एक ऐसे आदर्श शासन की नींव रखी जिसे रामराज्य कहा गया—जहां सत्य, न्याय और प्रेम का साम्राज्य था।
राम: मर्यादा और आदर्श का प्रतीक
राम केवल एक वीर योद्धा नहीं, बल्कि एक ऐसे शासक और पुरुष थे जिन्होंने जीवनभर धर्म और कर्तव्य का पालन किया। अपने जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में भी उन्होंने सदा मर्यादा का पालन किया, जिससे उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया।
राम की कथा हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म केवल शक्ति से नहीं, बल्कि त्याग, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा से स्थापित होता है। युगों-युगों तक राम का नाम मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।