भगवान कृष्ण: प्रेम, नीति और धर्म के अवतार
द्वापर युग में जब धरती पाप और अधर्म से बोझिल हो चुकी थी, तब भगवान विष्णु ने मानव रूप में अवतार लिया। इस अवतार का नाम था कृष्ण, जिन्होंने अपने जीवन से प्रेम, भक्ति, कूटनीति और धर्म का संदेश दिया।
कृष्ण का जन्म: संकट में अवतरण
कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, जब उनके माता-पिता देवकी और वसुदेव को उनके ही मामा कंस ने कारागार में बंदी बना रखा था। भविष्यवाणी के अनुसार, देवकी का आठवां पुत्र कंस का अंत करने वाला था, इसलिए वह उनके सभी नवजात शिशुओं को मार डालता था। लेकिन जब कृष्ण का जन्म हुआ, तो स्वयं योगमाया की कृपा से कारागार के द्वार खुल गए, और वसुदेव ने बालक कृष्ण को गोकुल पहुंचा दिया।
गोकुल और बाल लीलाएं
गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के स्नेह में पले-बढ़े कृष्ण ने अपने बचपन में अनेक चमत्कार दिखाए। वे माखन चोर के रूप में प्रसिद्ध हुए, जिनकी बाल लीलाओं से पूरा गाँव मोहित था। उन्होंने पूतना, शकटासुर और त्रिणावर्त जैसे असुरों का संहार किया।
एक दिन उन्होंने अपनी माँ यशोदा को अपने मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड दिखा दिया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वे कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा हैं।
कालिया नाग का नाश
यमुना नदी में एक विषैला नाग कालिया रहता था, जिसके कारण जल विषाक्त हो गया था। कृष्ण ने उस नाग के फनों पर नृत्य किया और उसे पराजित कर नदी को पुनः शुद्ध किया।
गिरिधर गोपाल: गोवर्धन पूजा
इंद्र देव के अहंकार को चूर करने के लिए कृष्ण ने समस्त गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। जब इंद्र ने क्रोधित होकर मूसलधार वर्षा शुरू कर दी, तब कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी को आश्रय दिया। तभी से वे गिरिधर गोपाल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
रासलीला और भक्ति का संदेश
कृष्ण का प्रेम केवल सांसारिक नहीं था, बल्कि भक्ति का उच्चतम स्वरूप था। उनकी रासलीला गोपियों के प्रति अनन्य भक्ति को दर्शाती है, जिसमें वे प्रेम और आत्मसमर्पण का दिव्य संदेश देते हैं। उनकी प्रिय राधा के साथ उनका प्रेम शुद्धता और अनंत भक्ति का प्रतीक है।
मथुरा वापसी और कंस वध
जब कृष्ण बड़े हुए, तो उन्होंने मथुरा जाकर अत्याचारी कंस का वध किया और अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त कराया। इसके बाद उन्होंने यदुवंश को संगठित किया और द्वारका नगरी की स्थापना की।
महाभारत और गीता का उपदेश
कृष्ण केवल प्रेम और भक्ति के प्रतीक नहीं थे, बल्कि एक महान कूटनीतिज्ञ और मार्गदर्शक भी थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने पांडवों का साथ दिया, लेकिन स्वयं शस्त्र नहीं उठाया। उन्होंने अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग का संदेश दिया।
कृष्ण का अंतिम संदेश
अपने अंतिम दिनों में कृष्ण ने यह सिखाया कि हर युग में धर्म की पुनर्स्थापना आवश्यक है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि प्रेम, नीति, कर्तव्य और धर्म का संतुलन ही मनुष्य को जीवन के वास्तविक उद्देश्य तक पहुँचाता है।
निष्कर्ष
भगवान कृष्ण केवल एक देवता नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन दर्शन हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में प्रेम, भक्ति, नीति, और कर्म का सही तालमेल होना चाहिए। वे आज भी अनंत काल तक हमारे हृदयों में बसते हैं और उनके नाम का स्मरण करना आत्मा को आनंद से भर देता है।