भगवान परशुराम: ब्राह्मण और क्षत्रिय का संगम
भगवान परशुराम हिंदू धर्म में विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनका व्यक्तित्व अद्वितीय है क्योंकि वे ब्राह्मण कुल में जन्मे थे लेकिन क्षत्रियों जैसी युद्ध-कला में निपुण थे। इस कारण उन्हें ब्राह्मण-क्षत्रिय अवतार कहा जाता है।
परशुराम का जन्म और वंश
परशुराम का जन्म भृगु ऋषि के वंश में हुआ था। उनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। वे शिव भक्त थे और भगवान शिव ने उन्हें दिव्य फरसा (परशु) प्रदान किया था, जिससे उनका नाम परशुराम पड़ा।
अधर्मी क्षत्रियों का विनाश
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, परशुराम ने अत्याचारी और अधर्मी क्षत्रियों का 21 बार संहार किया। यह घटना तब शुरू हुई जब राजा कार्त्तवीर्य अर्जुन ने अन्यायपूर्वक उनके पिता का वध कर दिया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने क्षत्रियों के अहंकार को नष्ट करने का संकल्प लिया।
परशुराम के महान कार्य
- धर्म की पुनर्स्थापना – उन्होंने अन्याय के खिलाफ संघर्ष कर धर्म का प्रचार किया।
- अद्वितीय योद्धा और शिक्षक – वे केवल युद्धकला में निपुण नहीं थे, बल्कि भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महायोद्धाओं के गुरु भी बने।
- चिरंजीवी (अमरता) – परशुराम उन सात चिरंजीवियों में से एक हैं, जो सदा जीवित रहेंगे।
- समुद्र से भूमि प्राप्ति – लोककथाओं के अनुसार, उन्होंने समुद्र से केरल और कोंकण की भूमि को बाहर निकाला।
महाकाव्यों में परशुराम का उल्लेख
- रामायण में वे भगवान राम की परीक्षा लेते हैं और उन्हें विष्णु का सच्चा अवतार मानते हैं।
- महाभारत में वे भीष्म, कर्ण और द्रोणाचार्य के गुरु के रूप में दिखाए गए हैं।
- कलियुग में भूमिका – मान्यता है कि कलियुग के अंत में वे भगवान कल्कि को दिव्य शस्त्रों का ज्ञान देंगे।
निष्कर्ष
भगवान परशुराम का जीवन त्याग, संघर्ष और वीरता का प्रतीक है। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि धर्म और न्याय के रक्षक भी थे। उनका अवतार ब्राह्मणों की तपस्या और क्षत्रियों की वीरता का अद्भुत मेल प्रस्तुत करता है, जिससे वे आज भी हिंदू धर्म में पूजनीय हैं।