भगवान बुद्ध: ज्ञान और अहिंसा के प्रकाशपुंज
सत्य और ज्ञान की खोज में अनेकों आत्माएँ भटकी हैं, लेकिन कुछ ही ऐसे महान आत्माएँ हुईं जिन्होंने मानवता को मोक्ष का मार्ग दिखाया। सिद्धार्थ गौतम, जिन्हें हम भगवान बुद्ध के रूप में जानते हैं, ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे, जिनका जीवन करुणा, अहिंसा और आत्मज्ञान की अमर गाथा है।
राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म और विलासितापूर्ण जीवन
सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में राजा शुद्धोधन और महारानी माया के यहाँ हुआ। राजमहल में सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन बिताने के बावजूद, सिद्धार्थ के मन में सदा जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने की जिज्ञासा बनी रही।
चार दृश्य और वैराग्य
एक दिन महल से बाहर जाते हुए सिद्धार्थ ने चार महत्वपूर्ण दृश्य देखे:
- एक वृद्ध व्यक्ति, जिससे उन्हें समझ आया कि बुढ़ापा सभी को आता है।
- एक बीमार व्यक्ति, जिसने उन्हें बताया कि शरीर रोगों से ग्रसित हो सकता है।
- एक मृत व्यक्ति, जिससे उन्हें जीवन की नश्वरता का आभास हुआ।
- एक संन्यासी, जिसने उन्हें अहसास कराया कि मोक्ष की खोज ही जीवन का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
इन दृश्यों ने उनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया।
संसार का त्याग और तपस्या
सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़कर संन्यास ग्रहण कर लिया। वे ज्ञान की खोज में वन-वन भटकते रहे और कठोर तपस्या की। कई वर्षों की साधना के बाद भी जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई, तब उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाने का निर्णय लिया।
बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति
गया (वर्तमान बोधगया) में एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान साधना के दौरान, उन्हें सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त हुआ और वे बुद्ध बन गए। उन्होंने जाना कि जीवन दुखों से भरा है, लेकिन इन दुखों से मुक्ति पाई जा सकती है।
चार आर्य सत्य और अष्टांग मार्ग
भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों को चार आर्य सत्य बताए:
- दुःख: संसार में जन्म, मृत्यु, रोग, और बुढ़ापा सभी दुखद हैं।
- दुःख का कारण: इच्छाएँ और तृष्णाएँ ही दुखों का मूल कारण हैं।
- दुःख का निवारण: तृष्णाओं को समाप्त करके ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
- दुःख से मुक्ति का मार्ग: अष्टांग मार्ग, जो जीवन को सही दिशा में ले जाता है।
धर्मचक्र प्रवर्तन: पहला उपदेश
सारनाथ में उन्होंने अपने पहले पाँच शिष्यों को उपदेश दिया, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। इसके बाद, उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर लोगों को अहिंसा, करुणा, और ध्यान का मार्ग दिखाया।
महापरिनिर्वाण
80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में भगवान बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। उनके उपदेशों ने न केवल भारत, बल्कि पूरे एशिया में बौद्ध धर्म को फैलाया और लाखों लोगों को सत्य और अहिंसा की राह दिखाई।
बुद्ध: एक युगपुरुष
भगवान बुद्ध केवल एक धर्मगुरु नहीं थे, बल्कि ज्ञान, करुणा और आत्मसंयम का जीता-जागता उदाहरण थे। उन्होंने दिखाया कि सच्ची शांति और मुक्ति बाहरी आडंबरों में नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और ध्यान में है। आज भी उनकी शिक्षाएँ मानवता को प्रेरित करती हैं और संसार को प्रेम, अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाती हैं।