नृसिंह अवतार:
हिरण्यकशिपु का जन्म और उसका अहंकार
पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष दिति और कश्यप ऋषि के पुत्र थे। ये दोनों भाई बलशाली और महत्वाकांक्षी थे। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार में पृथ्वी की रक्षा करते हुए मार डाला था। अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गया और उसने भगवान विष्णु से बदला लेने की ठान ली।
हिरण्यकशिपु ने अजेय बनने के लिए कठोर तपस्या शुरू की। उसकी तपस्या इतनी तीव्र थी कि ब्रह्मांड के देवता भी परेशान हो गए। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान देने का वचन दिया।
अमरता का भ्रमकारी वरदान
हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने यह स्पष्ट किया कि अमरता देना संभव नहीं है। तब हिरण्यकशिपु ने चतुराई से ऐसा वरदान मांगा, जो उसे अमर जैसा बना दे। उसने कहा:
1. मुझे न कोई मनुष्य मार सके, न कोई जानवर।
2. मेरी मृत्यु न दिन में हो, न रात में।
3. मुझे न घर के भीतर मारा जाए, न घर के बाहर।
4. मैं न आकाश में मरा जाऊं, न पृथ्वी पर।
5. मुझे न किसी अस्त्र से मारा जाए, न शस्त्र से।
ब्रह्मा जी ने यह वरदान स्वीकार किया। इस वरदान ने हिरण्यकशिपु को अजेय बना दिया, और उसने अपने आपको भगवान से भी बड़ा मान लिया।
हिरण्यकशिपु का अत्याचार और भगवान विष्णु के प्रति शत्रुता
वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकशिपु ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचाना शुरू कर दिया। उसने सभी देवताओं और ऋषियों को अपना दास बना लिया। उसने आदेश दिया कि कोई भी भगवान विष्णु की पूजा नहीं करेगा। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें।
प्रह्लाद का जन्म और विष्णु भक्ति
हिरण्यकशिपु के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद जन्म से ही भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उनके मन में ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम और आस्था थी।
जब हिरण्यकशिपु को यह पता चला कि उसका पुत्र विष्णु का उपासक है, तो वह आगबबूला हो गया। उसने प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद ने साफ कहा कि भगवान विष्णु ही परम सत्य हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
प्रह्लाद की परीक्षा
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद की भक्ति को तोड़ने और उसे दंडित करने के लिए अनेक प्रयास किए। उसने आदेश दिया कि प्रह्लाद को:
जहर दिया जाए, लेकिन विष्णु कृपा से जहर अमृत बन गया।
ऊंचे पर्वत से फेंक दिया जाए, लेकिन प्रह्लाद सुरक्षित रहे।
उसे हाथियों के पैरों तले कुचलने का प्रयास किया गया, लेकिन भगवान ने उसकी रक्षा की।
हर बार प्रह्लाद भगवान विष्णु का नाम लेकर बच जाते। यह देखकर हिरण्यकशिपु का अहंकार और बढ़ गया। उसने खुद अपने पुत्र को चुनौती देने का निर्णय लिया।
खंभे में भगवान की चुनौती
एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा, "अगर तुम्हारे विष्णु सर्वव्यापी हैं, तो क्या वह इस खंभे में भी हैं?"
प्रह्लाद ने विश्वासपूर्वक उत्तर दिया, "हां, भगवान हर जगह हैं।"
हिरण्यकशिपु ने गुस्से में खंभे पर प्रहार किया। खंभे के टूटते ही भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु को उसके अहंकार का उत्तर देने का निश्चय किया।
नृसिंह अवतार: हिरण्यकशिपु का अंत
खंभे से नृसिंह का प्रकट होना
जब हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार किया, तो उसमें से भगवान विष्णु का नृसिंह रूप प्रकट हुआ। यह रूप न तो पूर्णतः मनुष्य था, न ही जानवर। नृसिंह आधे शेर और आधे मानव के रूप में प्रकट हुए। उनका स्वरूप अत्यंत भयानक और अद्वितीय था—शेर का सिर, तीखे नख, चमकती आंखें, और विशाल शरीर। उनके गर्जन से समस्त ब्रह्मांड कांप उठा।
हिरण्यकशिपु का भय और क्रोध
हिरण्यकशिपु ने कभी नहीं सोचा था कि उसका वरदान तोड़ने के लिए ऐसा रूप प्रकट होगा। पहले तो वह घबराया, लेकिन फिर अपने अहंकार और शक्ति पर भरोसा करते हुए उसने नृसिंह से युद्ध करने का साहस किया।
दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। हिरण्यकशिपु अपनी ताकत और वरदान के बल पर लड़ता रहा, लेकिन नृसिंह अवतार ने उसकी हर चाल को विफल कर दिया।
वरदान का अंत और हिरण्यकशिपु का वध
हिरण्यकशिपु को मारने के लिए भगवान नृसिंह ने एक अद्वितीय रणनीति अपनाई, जिससे ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए वरदान की सभी शर्तों का पालन हुआ:
1. उन्होंने हिरण्यकशिपु को संध्या काल में पकड़ा, जो न दिन था न रात।
2. नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को महल के द्वार पर ले जाकर रखा, जो न घर के भीतर था, न बाहर।
3. उन्होंने हिरण्यकशिपु को अपनी जांघ पर रखा, जो न भूमि थी, न आकाश।
4. उन्होंने उसे नखों (न शस्त्र, न अस्त्र) से चीर दिया।
5. नृसिंह स्वयं न मनुष्य थे, न जानवर।
इस प्रकार, भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को मारकर उसके अहंकार का अंत किया और धर्म की स्थापना की।
प्रह्लाद की भक्ति की विजय
हिरण्यकशिपु के वध के बाद नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। उनका विकराल रूप देखकर सभी देवता भयभीत हो गए। तब प्रह्लाद ने भगवान के चरणों में समर्पण किया और अपनी भक्ति से उनका क्रोध शांत किया।
भगवान ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया और कहा, "तुम्हारी भक्ति अडिग और अनुकरणीय है। संसार तुम्हारे नाम से सदैव प्रेरणा लेगा।"
नृसिंह अवतार का महत्व
नृसिंह अवतार यह दर्शाता है कि अधर्म चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, ईश्वर की कृपा से सत्य और धर्म की विजय होती है। यह कथा भक्त प्रह्लाद की निष्ठा और भगवान विष्णु की दया का उदाहरण है।
इस प्रकार, नृसिंह अवतार ने न केवल हिरण्यकशिपु का अंत किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हर संभव रूप धारण कर सकते हैं।