![]() |
मछली अवतार उद्देश्य: जब प्रलय के समय पृथ्वी जलमग्न हो गई थी, भगवान विष्णु ने मछली का रूप लिया और राजा मनु की नाव को समुद्र के पानी से बचाया। इस नाव में सभी जीवों और वेदों को सुरक्षित रखा गया। |
बहुत समय पहले, जब धरती पर मनुष्यों और प्राणियों ने धर्म और सत्य के मार्ग से भटकना शुरू कर दिया, तो अधर्म का बोलबाला बढ़ने लगा। लोभ, पाप, और हिंसा ने पूरे संसार को अपनी चपेट में ले लिया। देवता और ऋषि-मुनि भी इस अराजकता से चिंतित हो गए। ऐसे में सृष्टि को पुनः संतुलित करने के लिए भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय के माध्यम से शुद्ध करने का निर्णय लिया।
इसी समय, पृथ्वी पर एक धर्मात्मा राजा मनु राज्य कर रहे थे। वे बहुत न्यायप्रिय और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। राजा मनु प्रतिदिन भगवान विष्णु की आराधना करते और अपने राज्य में धर्म का पालन सुनिश्चित करते। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें एक विशेष कार्य के लिए चुना।
एक दिन, जब राजा मनु नदी के किनारे यज्ञ और तपस्या कर रहे थे, अचानक उनकी नजर पानी में तैरती एक छोटी मछली पर पड़ी। मछली ने अपनी मधुर आवाज में कहा,
"हे राजन! मैं एक छोटी और कमजोर मछली हूं। बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। कृपया मेरी रक्षा करें।"
राजा मनु को उस मछली पर दया आ गई। उन्होंने मछली को अपने छोटे से कमंडलु (जल पात्र) में रख लिया। कुछ समय बाद, राजा ने देखा कि मछली तेजी से बढ़ने लगी। अब वह कमंडलु में नहीं समा सकती थी। राजा ने उसे एक बड़े तालाब में डाल दिया।
लेकिन मछली का आकार फिर से बढ़ने लगा। जल्दी ही वह तालाब के लिए भी बहुत बड़ी हो गई। राजा ने उसे एक नदी में छोड़ दिया। परंतु वहां भी उसका आकार इतना बढ़ गया कि वह नदी में समा नहीं सकी। अंततः राजा ने उसे समुद्र में छोड़ दिया।
मछली ने समुद्र में जाकर अपना विशाल रूप प्रकट किया। उसकी चमचमाती सुनहरी त्वचा और तेजस्वी स्वरूप देखकर राजा मनु हैरान रह गए। मछली ने अपनी गहरी और गूंजती हुई आवाज में कहा,
"हे राजन, मैं भगवान विष्णु हूं। मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। जल्द ही इस संसार पर प्रलय आएगा, और सबकुछ जल में डूब जाएगा। तुम्हें एक विशाल नाव बनानी होगी। उस नाव में सभी जीवों के जोड़े, जीवन के लिए आवश्यक वनस्पतियां, और वेदों को रखना होगा। जब प्रलय शुरू होगा, तो मैं तुम्हारी नाव को सुरक्षित मार्ग दिखाऊंगा।"
राजा मनु ने भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करने का प्रण लिया। उन्होंने तुरंत अपनी प्रजा के साथ मिलकर एक विशाल और मजबूत नाव का निर्माण शुरू किया। वेदों और पवित्र ग्रंथों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष स्थान बनाए गए। प्राणियों के लिए भोजन और जल का भी प्रबंध किया गया।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, प्रलय का समय निकट आता गया। समुद्र की लहरें पहले से ऊंची और प्रचंड होने लगीं। आकाश में काले बादल छा गए, और चारों ओर भय का माहौल फैलने लगा। राजा मनु को भगवान विष्णु पर अटूट विश्वास था। उन्होंने अपनी पूरी तैयारी पूरी कर ली और प्रलय के लिए प्रतीक्षा करने लगे।
समय बीतते-बीतते वह घड़ी आ गई जब प्रलय शुरू हुआ। आसमान में घने काले बादल छा गए, और चारों ओर भयंकर गर्जन होने लगा। समुद्र की लहरें इतनी ऊंची उठने लगीं कि उन्होंने जमीन को निगलना शुरू कर दिया। तेज़ हवाओं के साथ बारिश की धाराएं पृथ्वी को ढकने लगीं। सारे जीव-जंतु भयभीत हो उठे।
राजा मनु ने भगवान विष्णु की बात याद करते हुए तैयार की गई विशाल नाव में प्रवेश किया। उन्होंने सभी प्राणियों के जोड़े, वनस्पतियों के बीज और वेदों को नाव पर सुरक्षित स्थान पर रखा। राजा मनु ने अपनी प्रजा और बाकी जीव-जंतुओं को शांत करते हुए कहा,
"डरो मत। भगवान विष्णु स्वयं हमारी रक्षा करेंगे। हमें धैर्य और विश्वास बनाए रखना होगा।"
जैसे ही नाव प्रलय के उफनते जल में उतरी, उसे तेज़ लहरों ने इधर-उधर धकेलना शुरू कर दिया। आसमान और समुद्र के बीच केवल अंधकार था। तभी, समुद्र के बीचों-बीच एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ।
उस प्रकाश में भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार के रूप में प्रकट होकर राजा मनु को दर्शन दिए। भगवान का रूप अद्भुत और चमत्कारी था। एक विशाल मछली, जिसकी सुनहरी चमचमाती त्वचा और गहराई से चमकती हुई आंखें, दिव्यता का प्रतीक थीं। उनके सिर पर एक चमचमाता मुकुट था, और उनका पूरा शरीर तेजस्वी आभा से घिरा हुआ था।
राजा मनु ने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु की स्तुति की और कहा,
"हे प्रभु! आपकी कृपा से हम प्रलय के इस विनाशकारी जल से सुरक्षित रह पाएंगे। कृपया हमें इस महासागर के पार ले चलें।"
भगवान विष्णु ने कहा,
"हे मनु, यह प्रलय पुराने संसार को समाप्त कर नई सृष्टि के निर्माण का प्रारंभ है। मैं इस नाव को सुरक्षित स्थान पर ले जाऊंगा। लेकिन याद रखना, इस सृष्टि में धर्म और सत्य का पालन करना सबसे आवश्यक होगा।"
इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने विशाल शरीर से नाव को एक सुनहरी रस्सी से बांध लिया। उन्होंने रस्सी को अपने सींग में लपेटा और नाव को विशाल समुद्र के उफनते जल में सुरक्षित दिशा में ले जाने लगे।
नाव में बैठे सभी प्राणी भगवान विष्णु के इस चमत्कारिक रूप को देखकर शांत और आश्वस्त हो गए। राजा मनु ने देखा कि भगवान विष्णु का शरीर केवल एक मछली का नहीं था, बल्कि उसमें सृष्टि को बचाने और संतुलन बनाए रखने की शक्ति थी।
भगवान विष्णु ने मार्गदर्शन करते हुए राजा मनु को वेदों के गूढ़ रहस्यों और धर्म के महत्व का उपदेश दिया। प्रलय के दौरान उन्होंने मनु को बताया कि यह विनाश केवल अधर्म को समाप्त करने और नई सृष्टि के निर्माण के लिए आवश्यक है।
कई दिनों और रातों तक नाव समुद्र में तैरती रही। चारों ओर केवल पानी का असीम विस्तार था, और बीच-बीच में भगवान विष्णु का तेजस्वी प्रकाश नाव को सही दिशा में मार्गदर्शन देता रहा।
दिन और रात बीतते गए, और प्रलय का विनाशकारी जल धीरे-धीरे शांत होने लगा। समुद्र की गर्जना अब धीमी पड़ चुकी थी, और चारों ओर फैला अंधकार भी मिटने लगा। भगवान विष्णु के तेजस्वी मत्स्य रूप के प्रकाश ने जल के विशाल विस्तार को रोशन कर दिया। राजा मनु, नाव में बैठे सभी जीव-जंतु, और उनके साथ सुरक्षित रखे गए वेद, प्राचीन ग्रंथ और वनस्पतियां सुरक्षित थीं।
कुछ समय बाद, भगवान विष्णु ने राजा मनु से कहा,
"हे मनु, अब यह प्रलय समाप्त हो रहा है। मैं तुम्हें उस स्थान पर ले जा रहा हूं जहां नई सृष्टि की शुरुआत होगी। वहां से तुम्हें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हुए मानव जाति का नव निर्माण करना होगा।"
भगवान विष्णु ने नाव को धीरे-धीरे एक विशाल पर्वत की चोटी पर ले जाकर रोका। यह पर्वत हिमालय का एक भाग था, जो प्रलय के जल में भी अचल और अडिग खड़ा था। भगवान ने नाव को सुरक्षित रूप से वहीं ठहरा दिया।
धर्म की पुनर्स्थापना का संदेश
जैसे ही राजा मनु और जीव-जंतु नाव से उतरे, भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप को त्यागकर अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट होकर राजा मनु को उपदेश दिया,
"हे मनु, इस नई सृष्टि का आरंभ धर्म और सत्य के आधार पर होगा। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम जीव-जंतुओं और मानव जाति को धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दो। सत्य, अहिंसा, और करुणा के साथ इस संसार का संचालन करो।"
भगवान ने राजा को चार वेद और सभी पवित्र शास्त्र सौंपते हुए कहा,
"ये ज्ञान तुम्हें और तुम्हारी प्रजा को धर्म, विज्ञान, और जीवन के सही मार्ग पर चलने में सहायता करेंगे। इन्हें सुरक्षित रखना और अगली पीढ़ी को सौंपना तुम्हारा कर्तव्य है।"
नई सृष्टि की शुरुआत
इसके बाद भगवान विष्णु ने राजा मनु को आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। राजा मनु ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए नई सृष्टि की शुरुआत की। उन्होंने भूमि पर जीवन के हर रूप को फिर से स्थापित किया। जीव-जंतु, वनस्पतियां, और मानव जाति का विकास फिर से शुरू हुआ।
राजा मनु ने अपने राज्य में धर्म और न्याय को सर्वोपरि रखा। उन्होंने अपनी प्रजा को सिखाया कि जीवन में धर्म का पालन सबसे महत्वपूर्ण है। इस नई सृष्टि में सभी जीव शांति और सद्भाव के साथ रहने लगे।
उपसंहार
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार ने यह संदेश दिया कि जब भी संसार में अधर्म बढ़ेगा और जीवन संकट में पड़ेगा, तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होकर सृष्टि की रक्षा करेंगे। मत्स्य अवतार की यह कथा केवल प्रलय और पुनर्स्थापना की नहीं, बल्कि जीवन में धर्म, सत्य, और करुणा के महत्व को दर्शाने वाली है।
इस प्रकार, प्रलय के विनाश के बाद एक नई सृष्टि का आरंभ हुआ, और राजा मनु की नेतृत्व में मानव जाति ने धर्म के मार्ग पर चलना सीखा।